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सियासी बेरोजगारी झेल रहे चौ॰ अजित सिह ने किसानो के नाम पर तुगलक रोड पर सरकारी कोठी को हथियाने के लिये सरकार पर दबाव बनाने की खातिर मेरठ मे एक सम्मेलन आयोजित किया जिसमे भाजपा को छोड तमाम सियासी दलो के नेताओ ने शिरकत की । हर कोई खुद को चौ॰ सहाब का वारिस साबित करने और मोदी को कोसकर अपना सियासी हित साधते दिखा । वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण ऐसा सम्भव नही है लेकिन यदि कुछ समय के लिये यह मान भी लिया जाये कि किसानो के नाम पर यदि मोदी सरकार बँग्ले को स्मारक मे बदल भी दे तो प्रश्न यह उठता है कि क्या इससे देश के किसानो का दुर्भाग्य बदल जायेगा ? चौ॰ सहाब के समय से लेकर अब तक यह बँग्ला विभिन्न दलो की सरकारो मे मन्त्री रहे उनके पुत्र अजित सिँह के पास ही था तब से अब तक इस बँग्ले से कितने किसानो को लाभ हुआ , यह भी विचारणीय है । देश के अन्नदाता का तो दुर्भाग्य से पुराना नाता है जिसका इस बात से कोई फर्क नही पडता कि किस पार्टी की सरकार है और कौन मँत्री क्योकि अन्नदाताओ को सपने दिखाकर उन्हे ठगने मे कोई भी दल पीछे नही है ।
बरसात मे तो मानसून दगा दे गया और फिर जैसे तैसे कर फसल उगाई तो हुद-हुद आ गया जिसके कारण गन्ने और धान की तैयार फसल खेत मे ही गिर गयी लेकिन अब किसानो का साथ देने चौ॰ चरण सिहँ का कोई भी वारिस नही आया । गन्ना तैयार खडा है लेकिन मिले चलना तो दूर अभी इसकी कोई सुगबुगाहट भी नही है क्योकि अभी तो गन्ने के भाव को लेकर मिलो और नेताओ मे सौदेबाजी और आन्दोलनो के जरिये राजनीति होना बाकी है । पिछला हजारो करोड रुपया किसानो का मिलो पर बकाया है यह कब तक मिलेगा किसी को नही पता । जब ये वारिस कोठी पाने के लिये सम्मेलन कर सकते है तो फिर किसानो के हक के लिये खामोशी क्यो ? यदि वेस्ट यूपी को छोड दिया जाये तो इसमे भी सँदेह है कि देश के दूसरे भागो के कितने किसान अजित सिह से एक किसान नेता के रुप मे परिचित है । हर पार्टी और हर नेता खुद को किसानो और मजदूरो का हितेषी बताता है लेकिन जब वोट मिलने के बाद उनके लिये काम करने की बारी आती है तो किसानो का हाथ छोड उधोगपतियो की गोद मे जाकर बैठ जाता है । यही कारण है कि आजादी के लगभग सात दशक बाद भी देश मे ज्यादातर खेती प्रकृति के ही भरोसे हो रही है और इसीलिये सूखा और बाढ किसान की दिनचर्या का हिस्सा बन गये है । सूखा बाढ और राहत पैकेज का खेल भी खूब होता है लेकिन किसानो की स्थिति ज्यो की त्यो ही रहती है । बिजली के आँख मिचोली के खेल के साथ साथ खराब पडे नलकूप भी किसानो के दुर्भाग्य पर हँसते है । अपने सियासी और निजी फायदे के लिये देश मे नेताओ ने इन अन्नदाताओ का खूब इस्तेमाल किया लेकिन जब इनके लिये कुछ करने की बारी आयी तो सबने पल्ला झाड लिया । अच्छा होगा यदि चौ॰ सहाब के ये तथाकथित वारिस कोठी-कोठी के इस खेल के बाद केवल बातो और आश्वासनो से आगे जाकर किसानो की समस्याओ को हल कराने की दिशा मे भी कुछ कदम उठाये ।
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